Assembly Election : गारंटी या वादा किसकी बनेगी सरकार, आंकड़ों पर क्यों हो रही असमंजस

रायपुर। Assembly Election : पांच राज्यों में चुनावी पारा बढ़ा हुआ है। वहीं प्रदेश में चुनाव संपन्न के बाद सियासतदार राजस्थान में कमान संभाले हुये हैं। 3 दिसंबर को सभी राज्यों के नतीजे आ जाएंगे। ऐसे में राजनीति के जानकारों का अनुमान लगातार बदलता नजर आ रहा है। कभी कांग्रेस और कभी भाजपा के पाले में नजर आता दिख रहा है।

राजनीतिक पार्टियां 2023 का विधानसभा चुनाव काम-काज के सहारे लड़ने के बजाय गारंटी और वादों के सहारे लड़ी जा रही है। भाजपा ने जहां अपने घोषणा पत्र को पीएम मोदी की गारंटी बताया है। तो वहीं कांग्रेस ने भरोसे का घोषणा पत्र बता रही है। यह चुनाव गारंटी वर्सेस वादे के बीच सिमटकर रह गया है।

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Assembly Election : इस चुनाव को अब जानकार गारंटियों का युद्ध बता रहे हैं। वहीं आज सुबह एक अखबार के पॉकेट कार्टून में लिखा है। गारंटियों का युद्ध, एक बात की पक्की गारंटी है…जीतने के बाद जनता को कोई नहीं पूछने वाला…यह कार्टून भले ही व्यंग्य से भरा हुआ लग रहा। लेकिन 100 फीसदी सही है। जनता को कौन कब याद रखता है।

एक समय रबड़ी और रेवड़ी पर लड़ने वाले अब गारंटी और वादों के सहारे राजनीतिक लड़ाई लड़ने मैदान में उतरे हैं। पार्टियों के केन्द्र में मैदानी जरुरतें या आम आदमी नहीं रह गये हैं। गारंटी और वादों को केन्द्र में रखकर चुनाव लड़ा जा रहा है। प्रदेश में हुये विधानसभा चुनाव में पार्टियों के रहे घोषणा पत्र में एक नजर डालें तो अब तक दोनों ही पार्टियों ने जनता को ठगने का काम किया है।

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Assembly Election : एक ने जहां आम लोगों के खाते में 15 लाख आने की बात कहकर सरकार बनाई तो दूसरे ने शराबबंदी की घोषणा करके सरकार बनाई। सरकार बनते ही दोनों ही पार्टियां वादे से मुकर कर जता दिया है। उन्हें जनता की जरुरत सिर्फ और सिर्फ चुनाव जीतने के लिए पड़ती है। उसके बाद जनता की जरुरत नहीं है।

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