Bipasa Basu पर टुटा दुखो का पहाड़, 3 महीने की बेटी के दिल में दो छेद, जानें कैसे बीत रहे दिन
बॉलीवुड एक्ट्रेस Bipasa Basu और करण सिंह ग्रोवर पिछले साल नवंबर में एक बेटी के माता-पिता बने थे. बिपाशा की बेटी का नाम देवी है, जिसको लेकर हाल ही में उन्होंने ऐसा खुलासा किया, जिसको सुनकर सब चौंक गए. बिपाशा बसु ने बताया कि जन्म से ही उनकी बेटी देवी के दिल में दो छेद थे. सिर्फ तीन महीने की उम्र में ही उनकी बेटी की हार्ट सर्जरी करवाई गई. वह समय बिपाशा और उनके पति करण सिंह ग्रोवर के लिए काफी मुश्किल रहा था.
Bipasa Basu : फोर्टिस एस्कॉर्ट हार्ट इंस्टीट्यूट के हार्ट एक्सपर्ट डॉक्टर निशिष्ठ चंद्र का कहना है कि जन्म से बच्चों के दिल में होने वाला छेद अगर छोटा है तो उसमें दिक्कत नहीं होती है और वह अपने आप ही उम्र के साथ ठीक हो जाता है. लेकिन अगर छेद बड़ा हो तो उसके लिए सर्जरी करा लेना ही बेहतर होता है.
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Bipasa Basu : डॉक्टर ने कहा कि बच्चों में कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज यानी जन्म से ही दिल में कुछ गड़बड़ी होना भारत में आम समस्या हो गई है. हालांकि, अच्छी बात यह है कि अगर समय से इसकी पहचान हो जाए तो इलाज संभव होता है. बिपाशा की बेटी को जन्म से दिल में छेद होने वाली जो दिक्कत हुई, उसे मेडिकल की भाषा में ”वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट” कहा जाता है, जो कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज से जुड़ी एक कंडीशन है.
कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज का मतलब होता है कि बच्चे के दिल के स्ट्रक्चर में जन्म से ही गड़बड़ी होना. इनमें कुछ कंडीशन ऐसी होती हैं, जिनका इलाज बिना सर्जरी ही हो जाता है, लेकिन कुछ कंडीशन इतनी गंभीर होती हैं कि उनमें सर्जरी करना जरूरी हो जाता है. डॉ. चंद्र के अनुसार, भारत में हर एक हजार में नौंवा बच्चा जन्म से कॉन्जेनिटल हार्ट डिजीज से जूझ रहा होता है. इनमें हर पांचवें बच्चे की सर्जरी पहले साल ही करवानी पड़ जाती है.
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गर्भाशय में भ्रूण के विकास के दौरान, बाएं और दाएं वेंट्रिकल के बीच की दीवार नाजुक होती है और उसमें छेद हो जाता है. जिसके बाद दाएं वेंट्रिकल में गंदा और बिना ऑक्सीजन वाला खून जमा हो जाता है और बाएं में शुद्ध और ऑक्सीजन से भरपूर खून जमा हो जाता है. दोनों तरह के खून दिल में जाकर मिल जाते हैं. इसके असर से फेफड़ों में ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और कुछ गंदा खून सर्कुलेशन में आ जाता है. इस वजह से खून को पंप करने के लिए हृदय को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.
कई बार इसके पीछे का कारण अनुवांशिक होता है. कई मामलों में अनुवांशिक के साथ-साथ पर्यावरण भी इसके लिए जिम्मेदार होता है. पर्यावरण में बच्चे की मां का खाना और पीने का तरीका भी शामिल है, जिसका असर बच्चे की शुरुआती स्टेज पर पड़ता है. कई बार महिलाएं गर्भव्यवस्था में जो दवाइयां लेती हैं, उनका भी असर पड़ता है.
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हालांकि, डॉ. चंद्र के अनुसार इसका सबसे प्रमुख कारण कम आनुवांशिक फैलाव या अंतरप्रजनन है, जो परेशानी सबसे ज्यादा निचले सामाजिक-आर्थिक तबके में आम है जहां अंतरजातीय विवाह बड़े पैमाने पर नहीं होते हैं. यही कारण है कि बिहार और उत्तर प्रदेश में ऐसे बच्चों की संख्या ज्यादा होती है.
जन्म के बाद कई बार बच्चों में लक्षण जल्दी तो कई बार देरी से नजर आते हैं. बिपाशा बसु के केस में तीसरे दिन ही बच्ची की कंडीशन के बारे में पता चल गया था. डॉ. चंद्र कहते हैं कि जिन बच्चों के साथ ऐसी परेशानी होती है, उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो सकती है. साथ ही दूध पीते समय वह बच्चा काफी कमजोर और थका हुआ लगता है. बच्चे का वजन भी नहीं पड़ता है. संकेत नजर आने पर डॉक्टर हार्ट का अल्ट्रासाउंड करते हैं और पूरी स्थिति को देखते हैं. अगर बच्चे के दिल की स्थिति ठीक नहीं होती है तो माता-पिता को तुरंत सर्जरी की सलाह दी जाती है.
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हालांकि, इलाज महंगा है, इसलिए काफी लोग इसमें देरी कर देते हैं. लेकिन डॉक्टर के अनुसार, इसका ट्रीटमेंट जल्द से जल्द ही बेहतर होता है. एक समय बाद यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है, जिसके बाद इलाज मुश्किल हो जाता है. कई बार हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जरी की नौबत तक भी आ जाती है.