History of hockey in india : अंग्रेज़ों के खेल में भारतीयों ने कैसे हासिल की महारत

History of hockey in india : अब भले ही हॉकी दुनिया के लोकप्रिय खेलों में से एक हो गया हो, जो एक ओलंपिक खेल तो है ही, साथ ही साथ वर्ल्ड कप, चैंपियंस ट्रॉफ़ी और एफ़आईएच प्रो लीग जैसी बड़ी प्रतियोगिताओं में भी ये शामिल है। हॉकी का इतिहास काफ़ी पुराना है जो 16वीं सदी से चला आ रहा है।दुनिया के सबसे पुराने खेलों में से एक, हॉकी की शुरुआत संभवत: 1527 में स्कॉटलैंड से हुई थी, तब इसे अंग्रेज़ी में होकी (Hokie) के नाम से जाना जाता था। कुछ रिकॉर्ड्स बताते हैं कि इसी तरह का खेल उस समय मिस्र में भी खेला जाता था।

मौजूदा समय की हॉकी की शुरुआत 18वीं सदी के अंत और 19वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश द्वारा हुई थी। History of hockey in india तब ये स्कूल में एक लोकप्रिय खेल हुआ करता था और फिर ब्रिटिश साम्राज्य में 1850 में इसे भारतीय आर्मी में भी शामिल किया गया।

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बड़ी संख्या में ख़ाली मैदान की मौजूदगी और हॉकी के लिए कोई बहुत ज़्यादा उपकरण की आवश्यकता नहीं होने की वजह से ये खेल भारत में बच्चों से लेकर युवाओं तक की पहली पसंद बन गया था। इस देश में पहला हॉकी क्लब कलकत्ता (अब कोलकाता) में 1855 में स्थापित किया गया था।

अगले कुछ दशकों में कलकत्ता का बेइटन कप और बॉम्बे (अब मुंबई) का आग़ा ख़ान टूर्नामेंट राष्ट्रीय प्रतियोगिता के समकक्ष था।

ऐसा माना जाता है कि 1907 और 1908 के बीच हॉकी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया की स्थापना की बात चल रही थी, लेकिन इसने कभी आलमीजामा नहीं पहना। 1925 में भारतीय हॉकी संघ (Indian Hockey Federation, IHF) की स्थापना हुई थी और इससे एक साल पहले अंतर्राष्ट्रीय हॉकी संघ (International Hockey Federation, FIH) की शुरुआत हुई थी।

IHF ने पहला अंतर्राष्ट्रीय टूर 1926 में किया था जब टीम न्यूज़ीलैंड दौरे पर गई थी, जहां भारतीय हॉकी टीम ने 21 मैच खेले और उनमें से 18 में जीत हासिल की थी। इसी टूर्नामेंट में ध्यान चंद जैसी दिग्गज शख़्सियत को दुनिया ने पहली बार देखा था, जो आगे चलकर  सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बन गए।

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1924 के ओलंपिक गेम्स से पहले हॉकी सिर्फ़ 1908 और 1920 के ओलंपिक में ही खेला गया था। इसके बाद FIH ने आख़िरकार हॉकी को स्थायी ओलंपिक स्टेटस 1928 एम्सटर्डम ओलंपिक में दिया था।

यहीं से भारतीय हॉकी टीम के सुनहरे अतीत की शुरुआत हुई थी और फिर भारत ने अब तक रिकॉर्ड 8 ओलंपिक स्वर्ण पदक अपने नाम किए।

ओलंपिक में दबदबा

अब भले ही ओलंपिक में भारत का स्वर्ण पदक जीतना किसी सपने की तरह देखा जाता हो। लेकिन 1928 ओलंपिक में अपना डेब्यू करते हुए भारतीय हॉकी टीम ने स्वर्ण पदक हासिल किया था। उस ओलंपिक में भारत ने 5 मैच खेले थे और कुल 29 गोल दागे थे और एक भी गोल उनके ख़िलाफ़ नहीं हुआ था। इस दौरान ध्यान चंद की हॉकी स्टिक से 14 गोल आए थे।

इसके बाद तो ध्यान चंद भारतीय हॉकी टीम के प्रमुख अंग ही बन गए थे और 1932 और 1936 ओलंपिक में भी उन्होंने अपने दम पर भारत को दो और ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाए थे और अपनी कप्तानी में ही भारत को गोल्ड मेडल की हैट्रिक बनवाई।

Dhyan Chand (standing second from left) with the Indian hockey team at the 1936 Berlin Olympics. (Olympic Archives.)
जब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ओलंपिक की वापसी हुई तो भारत को ध्यान चंद के अलावा एक और दिग्गज मिल चुके थे, और वह थे बलबीर सिंह सीनियर , जिन्होंने एक बार फिर भारत को लगातार तीन स्वर्ण पदक दिलाए और ये हैट्रिक (1948, 1952 और 1956) इसलिए ख़ास थी क्योंकि ये हिन्दुस्तान की आज़ादी के बाद आई थी।भारत ने 1958 और 1962 एशियन गेम्स में भी रजत पदक जीते लेकिन देश को एशियन गेम्स में पहला स्वर्ण पदक 1966 में मिला था। मेक्सिको 1968 में भारत को कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा था जिसे उस समय का भारत का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन माना जाता है।

1970: भारतीय हॉकी इतिहास का पतन

हॉकी 70 के दशक में यूरोप की ओर पैर पसारने लगे था, हालांकि 1971 में स्पेन में आयोजित पहले हॉकी वर्ल्ड कप में पाकिस्तान ने स्पेन को हराकर ख़िताब अपने नाम किया था। जबकि भारतीय हॉकी टीम तीसरे स्थान पर रही थी।

भारत ने म्यूनिख में हुए 1972 ओलंपिक में भी कांस्य पदक हासिल किया था। इसके बाद टीम इंडिया ने 1973 वर्ल्ड कप के फ़ाइनल में भी जगह बनाई थी जहां उन्हें नीदरलैंड के हाथों हार नसीब हुई।

पुरुषों के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम भी मैदान में उतरी और 1974 में खेले गए पहले महिला हॉकी वर्ल्ड कप में भी भारतीय महिलाओं ने शिरकत की, जहां वे चौथे स्थान पर रहीं।

70 के दशक में भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने वापसी के संकेत ज़रूर दिए थे जब 1975 हॉकी वर्ल्ड कप का ख़िताब भारत के सिर गया।

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