Vegitable Price : सब्जियों की कीमतें आसमान पर, किसान हलकान, उपभोक्ता परेशान, बिचौलियों की पौ-बारह

Vegitable Price : डॉ राजाराम त्रिपाठी (राष्ट्रीय संयोजक, ‘अखिल भारतीय किसान महासंघ’ www.farmersfederation.com (आईफा) ; यह मुद्दा जटिल है और भारतीय कृषि प्रणाली में वर्षों से चली आ रही समस्याओं व खामियों का सम्मिलित नतीजा है। एक तरफ़ फसल का उचित मूल्य नहीं मिल पाने के कारण किसान इतने परेशान हैं कि आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर हो रहे हैं, जबकि दूसरी तरफ़ शहरी उपभोक्ता सब्जियों की बढ़ती कीमतों से परेशान हैं। सवाल यह उठता है कि इस विडंबना के लिए जिम्मेदार कौन है? यहां हम इसके कर्म और इसके समाधान पर विचार करेंगे।

मंडियों और बिचौलियों की भूमिका

हाल के दिनों में एक बार फिर सब्जियों के भाव आसमान छू रहे हैं। आम उपभोक्ता त्राहि-त्राहि कर रहा है। परंतु ऐसा नहीं कि सब्जियों के भाव बढ़ने से किसान मालामाल हो रहे हैं। दरअसल किसानों की सब्जियों की ज्यादातर खड़ी फसल अतिवृष्टि के कारण खराब हो गई है , इसमें बीमा की भी कोई व्यवस्था नहीं है, मौसम की इस मार से बेचारा किसान छाती पीट रहा है। मांग की तुलना में आपूर्ति कम होने के कारण बिचौलिए इस अवसर का फायदा उठा रहे हैं और चांदी काट रहे हैं। वास्तविक स्थिति एवं परिस्थितियों को न समझ पाने के कारण इस स्थिति के लिए लोग किसानों को जिम्मेदार ठहराते हैं और किसानों को भला बुरा कहते हैं । जो कि गलत है। आज हम इसके कारणों एवं सब्जियों के उत्पादन से लेकर विवरण तक की पूरी व्यवस्था का बिंदुवार जायजा लेते हैं।

Vegitable Price
Vegitable Price

Vegitable Price : भारतीय कृषि व्यवस्था में सबसे बड़ी समस्या बिचौलियों और मंडियों की होती है। किसान अपनी फसल को मंडियों तक पहुँचाने के लिए लंबा सफर तय करता है, जहाँ हर दृष्टि से मजबूत तथा संगठित बिचौलियों के गिरोह उसका फायदा उठाते हैं। मंडियों में सब्जियों की कीमतें इन्हीं सशक्त बिचौलियों के सिंडीकेट के द्वारा ही निर्धारित होती हैं, और जब यह सब्जियां शहरों की ओर जाती हैं, तो इन पर कई चरणों में कीमतें बढ़ाई जाती हैं। एक सर्वे के अनुसार, जो सब्जी किसान से मंडी में 10 रुपये प्रति किलो खरीदी जाती है, वही सब्जी शहरी उपभोक्ता के रसोई तक पहुँचते-पहुँचते 40 से 50 रुपये किलो हो जाती है। यह बढ़ोतरी किसानों के लाभ के लिए नहीं होती, बल्कि बिचौलियों और रिटेलरों के लाभ के लिए होती है। मौसम अथवा किसी कारण वश फसल खराब होने अथवा उत्पादन कम होने के कारण मंडी में सब्जियों की आवक कम होने पर इन बिचौलियों द्वारा अधिक मुनाफाखोरी हेतु सब्जियों के दाम में अप्रत्याशित वृद्धि कर दी जाती है।आपूर्ति कम होने की दशा में मजबूर उपभोक्ता ज्यादा कीमत देकर भी सब्जी खरीदना है। पर इस स्थिति में भी इस बढ़ी हुई दरों का कोई फायदा किस को नहीं मिल पाता।

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असमान वितरण प्रणाली

सब्जियों की कीमतों में मंडी और रिटेल के बीच का अंतर इस असमान वितरण प्रणाली की ओर इशारा करता है। बड़े शहरों में सब्जियों की आपूर्ति और मांग के बीच असंतुलन होता है। इसके कारण आपूर्ति श्रृंखला में कई स्तरों पर बढ़ोतरी होती है, जिससे यकायक सब्जियों के दाम आसमान छूने लगते हैं। सब्जियों की गुणवत्ता और परिवहन के दौरान होने वाले नुकसान को भी कीमतों में जोड़ा जाता है। लेकिन यह किसान के हाथ में नहीं होता, जो अपनी मेहनत से फसल उगाता है और अंततः घाटे में ही रहता है।

कृषि लागत और मूल्य निर्धारण की समस्या

भारतीय किसानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उन्हें उनकी लागत से भी कम मूल्य पर अपनी फसल बेचनी पड़ती है। उर्वरक, बीज, जल, श्रम, और परिवहन की लगते हैं बढ़ती जा रही हैं। कृषि यंत्र, खाद, बीज दवाई के व्यापारी इन वस्तुओं की बिक्री से भरपूर मुनाफा कमा रहे हैं। दूसरी और इनकी बढ़ती कीमतों के साथ दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही कृषि लागतों के बावजूद किसान को उत्पादों का उचित मूल्य नहीं मिल पाता। इसके विपरीत, रिटेलर और अन्य बिचौलिये बड़े मुनाफे पर सब्जियां बेचते हैं। इस असमानता के कारण किसान की आर्थिक स्थिति दयनीय बनी रहती है। यह विडंबना है कि जिस उत्पाद के लिए किसान खून-पसीना बहाता है, उसी का लाभ किसी और को मिल रहा है।

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बाजार मूल्य निर्धारण एवं नियंत्रण नीति

किसानों से 2022 तक उनकी आमदनी दुगनी करने का वादा किया गया था किंतु उनके उत्पादों का वाजिब मूल्य न मिलने के कारण तथा लगातार बढ़ते कृषि घाटे से किसानों की स्थिति दिनों-दिन बिगड़ती जा रही है। गेहूं, धान, दलहन, तिलहन, और कपास जैसी प्रमुख फसलों के साथ ही बागवानी एवं साग सब्जियों का भी उचित मूल्य न मिलने के कारण, फायदा तो छोड़िए किसान अपना उत्पादन लागत लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं। ऐसे में किसानों के लिए ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून’ अनिवार्य हो गया है। यह कानून किसानों को उनके उत्पादन के लिए एक न्यूनतम मूल्य की सुरक्षा देगा, जिससे वे बाजार के उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होंगें तथा घाटे से बच सकेंगे। इसके साथ ही उपभोक्ताओं के हित संरक्षण हेतु इस न्यूनतम समर्थन मूल्य में परिवहन पैकेजिंग सहित सभी अनुसंगी व्ययों तथा उचित न्यायकारी लाभ को जोड़कर एक समुचित अधिकतम मूल्य भी तय कर दिया जाना चाहिए, ताकि बिचौलिए इस तरह की लूटना मचा पाएं। इस प्रकार से सब्जियों का मूल्य ‘न्यूनतम मूल्य गारंटी कानून’ के साथ ही ‘अधिकतम विक्रय मूल्य’ के कानूनी नियंत्रण से उपभोक्ताओं की जेब अनावश्यक रूप से नहीं कटेगी तथा महंगाई का बोझ कम पड़ेगा और किसानों को भी उनके उत्पादों का सही दाम मिल सकेगा।

समाधान और सुझाव

इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब हम इस कृषि व्यवस्था को सुधारने के लिए ठोस कदम उठाएं। सबसे पहले, कृषि मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया को पारदर्शी और किसान हितैषी बनाना होगा। सरकार को ऐसी नीतियाँ बनानी होंगी जिससे किसान को उसके उत्पाद का सीधा लाभ मिले। ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) जैसी योजनाएं, जो किसानों को सीधा उपभोक्ताओं से जोड़ती हैं, को और भी व्यापक स्तर पर लागू करना होगा। इससे बिचौलियों की भूमिका कम हो जाएगी और किसान को सीधे बाजार से उचित मूल्य प्राप्त हो सकेगा।

साथ ही, किसान उत्पादच सकतेक संगठन (FPO) को बढ़ावा देना आवश्यक है। FPO के माध्यम से किसान सामूहिक रूप से अपने उत्पाद बे हैं और मंडी के बजाय सीधा उपभोक्ताओं तक पहुँच सकते हैं। इसके अलावा, कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग यूनिट्स की स्थापना से सब्जियों का भंडारण और प्रसंस्करण किया जा सकता है, जिससे किसानों को बेहतर मूल्य मिल सकेगा और सब्जियों की बर्बादी भी रोकी जा सकेगी।

अंततः यह स्पष्ट है कि कृषि क्षेत्र की इस समस्या का समाधान तभी हो सकता है जब किसान, उपभोक्ता, और सरकार के बीच समन्वय हो। किसानों को उनकी मेहनत व लागत का उचित फल मिल सके। इसके लिए वर्तमान कृषि व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन के साथ व्विपणन व्यवस्था एवं मूल्य निर्धारण कानूनों में व्यापक सुधारों की आवश्यकता है। भारतीय कृषि क्षेत्र की यह विरोधाभासपूर्ण स्थिति तब तक बनी रहेगी, जब तक हम इसके सभी पहलुओं पर ध्यान नहीं देंगे और उचित नीतियों के माध्यम से इसका समाधान नहीं करेंगे।

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