Manipur Violence : उग्रवादियों ने डाले अब तक के सबसे बड़े डाके, 19000 गोलियां, 199 राइफल्स, 21 कार्बाइन ले उड़े

Manipur Violence : जातीय संघर्ष से प्रभावित मणिपुर में भीड़ द्वारा पुलिस शस्त्रागार में घुसकर हथियार और गोला-बारूद लूटने के एक दिन बाद, पुलिस महानिदेशक राजीव सिंह ने शुक्रवार को बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि लूटपाट की घटना में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी. शीर्ष अधिकारी ने कहा, हालांकि पूर्वोत्तर राज्य धीरे-धीरे सामान्य स्थिति की ओर लौट रहा है, लेकिन हिंसा की कुछ छिटपुट घटनाएं हो रही हैं.

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Manipur Violence : मीडिया से बात करते हुए सिंह ने कहा, ‘हथियारों की लूट में शामिल किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा. अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.’ भीड़ ने बिष्णुपुर जिले के नारानसीना स्थित द्वितीय इंडिया रिजर्व बटालियन (आईआरबी) के मुख्यालय में घुसकर एके और ‘घातक’ शृंखला की राइफल तथा विभिन्न बंदूकों की 19 हजार से अधिक गोलियां (बुलेट्स) लूट लीं. अधिकारियों के मुताबिक, भीड़ ने 3 मई को विभिन्न राइफलों की 19,000 राउंड से अधिक गोलियां, एके सीरीज की एक असॉल्ट राइफल, तीन ‘घातक’ राइफल, 195 सेल्फ-लोडिंग राइफल्स, पांच एमपी-4 बंदूक, 16.9 एमएम की पिस्तौल, 25 बुलेटप्रूफ जैकेट, 21 कार्बाइन, 124 हथगोले सहित अन्य हथियार लूट लिए.

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Manipur Violence : मणिपुर राइफल्स के जवान टोरुंगबाम ऋषिकुमार को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने राजीव सिंह ने कहा, ‘हिंसा की छिटपुट घटनाएं होने के बावजूद स्थिति सामान्य होने लगी है.’ उन्होंने सुरक्षाकर्मियों से सहयोग करने की अपील की. घायल टोरुंगबाम ने गुरुवार रात दम तोड़ दिया. डीजीपी ने 47 वर्षीय टोरुंगबाम की मौत को “दुर्भाग्यपूर्ण” बताया. गुरुवार को इंफाल पश्चिम जिले के सेनजम चिरांग में अज्ञात बंदूकधारियों के साथ गोलीबारी के दौरान तोरुंगबाम ऋषिकुमार को सिर में गोली लग गई थी. सिंह ने कहा कि मृतक के परिवार को सहायता दी जाएगी.

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अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे के मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद 3 मई को मणिपुर में जातीय झड़पें होने के बाद से 160 से अधिक लोगों की जान चली गई और कई सौ लोग घायल हो गए. मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी – नागा और कुकी – 40 प्रतिशत से कुछ अधिक हैं और पहाड़ी जिलों में रहते हैं.

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