Kanwar yatra: मुस्लिम शिव भक्त Kanwar ले चला भोलेबाबा के द्वार , नफरत फैलाने वालों को कहि या बात……..
Kanwar yatra :मुजफ्फरनगर के कांवड़ (Kanwar) मेले में एक मुस्लिम शिव भक्त शामिल हुआ है. इस शिव भक्त का नाम राजू है. राजू 58 साल के हैं. वो हरिद्वार से गंगाजल भरकर अपनी कांवड़ पुरा महादेव मंदिर ले जा रहे हैं.
इंडिया टुडे से जुड़े संदीप सैनी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजू शिव भगवान में आस्था रखते हैं. वो 11 जुलाई को मुजफ्फरनगर पहुंचे. उन्होंने बताया,
“मैं 13 साल की उम्र से शिव भगवान में आस्था रखता हूं. और पिछले 4 सालों से कांवड़ यात्रा में आ रहा हूं.”
राजू अपनी यात्रा के दौरान व्रत रखते हैं. पूरे नियम और कायदे से अपना कांवड़ लेकर चल रहे हैं. वो कहते हैं,
“मुस्लिम होने के बाद भी आज तक मेरे परिवार या समाज के किसी भी सदस्य ने मुझे कांवड़ लाने से नहीं रोका.”
राजू बताते हैं कि उनके पिता का नाम रशीद अहमद है. वो आगे कहते हैं,
“हम जात से मुस्लिम लोहार हैं. मैं हर साल हरिद्वार से पुरा महादेव जाता हूं. यह मेरी चौथी कांवड़ यात्रा है. मैं चलने से पहले नहाता-धोता हूं. फिर जल भरने के बाद धूपबत्ती करता हूं. दूध को लेकर गंगा जी में चढ़ाऊंगा. इसके बाद मैं भोले के आगे हाथ जोड़ कर अपनी कांवड़ लेकर चलता हूं. मैं सोमवार को व्रत भी रखता हूं.”
मुस्लिम समुदाय जो मानता है हिंदू प्रथाएं
साल 2019 में IIT पटना के स्कॉलर्स बड़े हैरान हुए थे. दरअसल, इंस्टीट्यूट का ‘सेंटर ऑफ एंडेजर्ड लैंग्वेज स्टडीज’ विभाग एक रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था. हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसी दौरान स्कॉलर्स को लाठोर समुदाय के लोग मिले थे. जो मुस्लिम थे लेकिन उन्हें मस्जिद में जाने की अनुमति नहीं थी.
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लाठोर समुदाय के लोगों ने बताया था कि वो राजस्थान से उत्तर प्रेदश होते हुए बिहार के बक्सर पहुंचे थे. उन्होंने कहा था कि उन्हें मस्जिद जाने की मनाही इसलिए हैं क्योंकि वो कथित निम्न जाति से आते हैं. हालांकि, मृत्यु के बाद उन्हें कब्रिस्तान में ही दफनाया जाता है.
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लाठोर भले ही मुस्लिम समुदाय है लेकिन वो हिंदू धर्म की मान्यताओं को मानते हैं. वे दशहरा-दिवाली जैसे तमाम हिंदू त्योहार भी मनाते हैं. उनकी शादी में सिंदूर लगाने की प्रथा मानी जाती है. इसे वो सिंदूर दान कहते हैं. वो अलग-अलग रंगों जैसे लाल, हरा, पीला इत्यादि का सिंदूर इस्तेमाल करते हैं. पांच दिनों की शादी में वे आखिरी दिन, सिंदूर दान के बाद कलमा पढ़ते हैं.