दुनियभर में Food Oil की कीमतों में आई भारी गिरावट, भारत में तेल का खेल जारी, जानें पूरा गणित

Food Oil : भारत में खाने के तेल का व्यापक इस्तेमाल होता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देश में एडिबल ऑयल की कीमत में काफी तेजी आई है। लेटिन अमेरिका में उत्पादन में कमी, कोविड के कारण लेबर की शॉर्टेज और यूक्रेन युद्ध के कारण वेजिटेबल ऑयल इंडस्ट्री की मुश्किलें बढ़ी। लेकिन पिछले एक साल में इंटरनेशनल लेवल पर क्रूड एडिबल ऑयल की कीमत में भारी गिरावट आई है लेकिन भारत में इसके अनुरूप कीमत कम नहीं हुई है।
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Food Oil : 2021-22 में भारत में खाने वाले तेल की खपत 2.58 करोड़ टन रही जो एक दशक पहले के मुकाबले 60 लाख टन अधिक है। भारत अपनी जरूरत का अधिकांश खाद्य तेल आयात करता है। यानी देश में इसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय कीमतों से जुड़ी हैं। मई 2022 से मई 2023 के बीच इंटरनेशनल लेवल पर क्रूड एडिबल ऑयल की कीमत में भारी गिरावट देखने को मिली। लेकिन इस अनुपात में देश में खाने तेल की कीमत में कमी नहीं आई। मई 2022 से जुलाई 2023 के बीच क्रूड पाम ऑयल और आरबीडी (रिफाइंड) पामोलीन की कीमत में इंटरनेशनल लेवल पर 45 फीसदी गिरावट आई। लेकिन इस दौरान भारत में वनस्पति की कीमत में 21 फीसदी और पाम ऑयल की कीमत में 29 फीसदी गिरावट रही। सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल का भी यही हाल रहा।
जनवरी, 2020 में क्रूड पाम ऑयल पर इम्पोर्ट ड्यूटी 41.25 परसेंट थी जो जून में घटकर 5.5 परसेंट रह गई। इसी तरह आरबीडी पामोलीन पर जून 2018 में यह 59.4 परसेंट थी जो अब 13.75 परसेंट रह गई है। क्रूड सोयाबीन और सनफ्लावर पर 2020 के अंत में इम्पोर्ट ड्यूटी 38.5 परसेंट थी जो जून 2023 में 5.5 परसेंट रह गई। रिफाइंड सनफ्लावर और सोयाबीन ऑयल पर भी ड्यूटी में इसी तरह कमी आई है।
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2008 में भारत से खाद्य तेलों के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया गया था। इसे कई बार बढ़ाया गया। लेकिन अप्रैल 2018 से खाद्य तेलों के एक्सपोर्ट की अनुमति दी गई। लेकिन सरसों के तेल के एक्सपोर्ट पर सीलिंग लगाई गई है। इसे 5 किलो के पैक में मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस पर निर्यात किया जा सकता है। देश में तेल की बढ़ती कीमत के कारण एक्सपोर्ट के लिए कम ही गुंजाइश बचती है। 2022-21 में एक्सपोर्ट घरेलू उपलब्धता का एक फीसदी भी नहीं पहुंच पाया।
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मूंगफली और सरसों के तेल पर रिटेल मार्जिन में कमी आई है। हालांकि वनस्पति और दूसरे तेलों पर यह मामूली बढ़ा है। अगर इंटरनेशनल कीमत और सरकारी टैक्स कम रहती हैं, एक्सपोर्ट से शॉर्टेज नहीं रहती है और रिटेल मार्जिन में भारी तेजी नहीं आती है तो ऐसा लगता है कि कंपनी और होलसेल लेवल पर कीमत बढ़ी है। इसे डिमांड के अनुरूप रखा जा है।
डिमांड में तेजी

2012-13 में भारत में खाने के तेल की सालाना डिमांड 15.4 किलो पर कैपिटा थी जबकि दुनिया में यह 26.3 किलो थी। हालांकि अब भी भारत का एवरेज दुनिया की तुलना में कम है लेकिन खपत लगातार बढ़ रही है। 2021-22 में यह प्रति व्यक्ति 21 किलो तक पहुंच गई। इसलिए घरेलू कीमत में तेजी को देश की बढ़ती डिमांड से जोड़ा जा सकता है।
इंटरनेशनल कीमत

लेटिन अमेरिका में उत्पादन में कमी, कोविड के कारण लेबर की शॉर्टेज और यूक्रेन युद्ध के कारण वेजिटेबल ऑयल इंडस्ट्री की मुश्किलें बढ़ी हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमत में लगातार तेजी बनी रही। उदाहरण के लिए मई 2019 में आरबीडी पामोलीन की कीमत 38,000 रुपये प्रति टन थी जो मई 2022 में 137,000 रुपये पहुंच गई। लेकिन इसके बाद इसमें भारी गिरावट आई। मई 2022 के बाद इसकी कीमत में 44 परसेंट गिरावट आई है।